काशी जुरा का मामला
भूमिका : भारतीय विधि के इतिहास में काशी जुरा प्रकरण का अपना अलग ही महत्व है यह प्रकरण तत्कालीन गवर्नर जनरल एंड काउंसिल ( सुप्रीम काउंसिल ) तथा कोलकाता के सुप्रीम कोर्ट के बीच संघर्ष एवं टकराव की स्थिति को परिलक्षित करता है इसमें मुख्य विवादित एवं विचारणीय बिंदु सुप्रीम कोर्ट की अधिकारिता का था यह प्रकरण 1779-80 के बीच का माना जाता है
तथ्य : काशीनाथ बाबू नाम के एक धनाढ्य व्यक्ति ने काशी जुरा के राजा को विपुल धनराशि ऋण स्वरूप दी थी वे इस ऋण की कोलकाता के राजस्व बोर्ड के माध्यम से वसूल करना चाहते थे लेकिन इसमें उनकी सफलता नहीं हुई इस पर उन्होंने काशी जुरा के राजा के विरुद्ध कोलकाता के सुप्रीम कोर्ट में 13 अगस्त 1779 का एक वाद स्थगित किया था, काशीनाथ बाबू ने इस आशय का एक शपथ पत्र भी प्रस्तुत किया कि वे मालगुजारी की वसूली का कार्य करने के कारण सुप्रीम कोर्ट के अधिकार क्षेत्र में आते थे
वाद प्रस्तुत होने पर सुप्रीम कोर्ट द्वारा काशी जुरा के राजा के विरुद्ध गिरफ्तार के लिए सम आदेश जारी कर दिया गया उधन काशी जुरा के राजा अपनी गिरफ्तारी से बचने के लिए चुपके चुपके फिर रहे थे जिससे समा देश बिना तमिल के ही वापस सुप्रीम कोर्ट में लौटाया
राजा के छिप जाने के दो दुष्परिणाम सामने आए पहला था यह कि इसमें कंपनी की मालगुजारी की वसूली का काम रुक गया था जिससे उसे भारी नुकसान हो रहा था परिणाम स्वरूप गवर्नर जनरल एवं काउंसिल द्वारा महाधिवक्ता एडवोकेट जनरल के परामर्श से यह आदेश प्रसारित किया गया कि कंपनी के कर्मचारी व समीक्षा से सुप्रीम कोर्ट अधिकारिता स्वीकार करने वाले व्यक्तियों को छोड़कर अन्य व्यक्ति सुप्रीम कोर्ट की अधिकारिता में नहीं आते, अतः वे सुप्रीम कोर्ट की आदेशों का पालन करने के आबर्ध नहीं है । दूसरा यह है कि अपना समादेश बिना तमिल लौट आने का कारण सुप्रीम कोर्ट को नाखुश थी , आता है उसकी द्वारा राजा को गिरफ्तार वह उसकी सहमति को जप्त करने के लिए फिर से समादेश जारी किया और उसके निष्पादन के लिए शेरिफ सहित 50 - 60 व्यक्तियों का एक दल भेजा गया इस दल ने काशीज़ुरा के राजा को गिरफ्तार कर लिया ।
जब इस सारे घटनाक्रम की सूचना गवर्नर जनरल एवं काउंसिल को मिली तो उसने सुप्रीम कोर्ट के कर्मचारियों के बल प्रयोग को रोकने के लिए मिदनापुर के एक सेना अधिकारी को सेना सहित काशी जुरा भेजा । सेना की टुकड़ी की कशी ज़ुरा के राजा से भेट रास्ते में ही हो गई सुप्रीम काउंसिल की सेना ने सुप्रीम कोर्ट के कर्मचारियों को गिरफ्तार करते हुए काशीज़ुरा कि राजा को मुक्त कर दिया ।
उधर काशीनाथ बाबू ने गवर्नर जनरल एवं काउंसिल सदस्यों के विरोध भूमि में अतिचार का एक मामला सुप्रीम कोर्ट में दायर कर दिया पहले तो गवर्नर जनरल एवं काउंसिल के सदस्य सुप्रीम कोर्ट के समक्ष उपस्थित हो गए थे । लेकिन कालांतर में अपने एडवोकेट की राय से उन्होंने सुप्रीम कोर्ट से अपनी उपस्थिति वापस ले ली । वकील के इस कृत्य से सुप्रीम कोर्ट नाराज हो गई और उसने अपना सारा क्रोध उस पर उतारते हुए न्यायालय के आमान में जेल भेज दिया । जेल में रहने के दौरान ही उसे अपनी पत्नी की मृत्यु के समाचार मिले और जेल से रिहा होने की शीघ्र बाद ही उसकी मृत्यु भी हो गई इस प्रकार इस प्रकरण का पटाक्षेप हुआ।
पक्ष विपक्ष की तर्क : यह प्रकरण काफी आलोचना का विषय रहा गवर्नर जनरल एवं कौंसिल की तरफ से यह तर्क प्रस्तुत किया था कि सुप्रीम कोर्ट को इस मामले की सुनवाई की अधिकारिता नहीं थी क्योंकि काशी जुरा का राजा कंपनी का कर्मचारी नहीं था जबकि सुप्रीम कोर्ट का यह मानना था कि काशीपुरा का राजा जमीदार होने के साथ-साथ मालगुजारी की वसूली कार्य भी करता था इसलिए वह अप्रत्यक्ष रूप से कंपनी का कर्मचारी था और इसी कारण उसे उस पर अधिकार क्षेत्र था
विधि वेताओ का मत है कि अधिकारिता सुनिश्चित करने का अधिकार केवल सुप्रीम कोर्ट को ही था सुप्रीम काउंसिल को नहीं यही कारण है कि सेटिफिन द्वारा इस मामले में सुप्रीम काउंसिल की भर्त्सना करते हुए यह कहा गया कि -
" The Supreme Councils Acted Haughtily, Quite Illegally And Most Violently Without Any Adequate Reason For Conduct . "
सुप्रीम काउंसिल एवं काशी ज़ुरा के राजा को यह चाहिए था कि वे सुप्रीम कोर्ट से ही अधिकारीता का प्रशन तय कराते तथा उससे व्यथित होने पर विरुद्ध प्रिवी कौंसिल में अपील करते हैं लेकिन सुप्रीम काउंसिल ने ऐसा नहीं करते वही अधिकारिता के संबंध में आदेश जारी कर दिया और यह कह दिया कि व्यक्ति स्वयं करें कि वह सुप्रीम कोर्ट के अधिकार क्षेत्र में आता है या नहीं यह विधि विरुद्ध था ।
उल्लेखनीय है कि सुप्रीम कोर्ट की अधिकारिता के संबंध में सुप्रीम काउंसिल द्वारा ब्रिटिश संसद में भी अभ्यर्थना प्रस्तुत की गई थी इसके परिणाम स्वरूप सुप्रीम कोर्ट की अधिकारिता को काफी कम कर दिया गया था ।
प्रतिपादित सिद्धांत -
यद्यपि इस मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा महत्व कोई निर्णय पारित किया गया और ना ही विधि के सिद्धांत प्रतिपादित किए गए लेकिन इसके जो परिणाम निकले उन्हीं को विधि के सिद्धांत प्रतिपादित किए गए लेकिन इसके जो परिणाम निकले उन्हीं को विधि के सिद्धांत माना जा सकता है यथा -
भूमिका : भारतीय विधि के इतिहास में काशी जुरा प्रकरण का अपना अलग ही महत्व है यह प्रकरण तत्कालीन गवर्नर जनरल एंड काउंसिल ( सुप्रीम काउंसिल ) तथा कोलकाता के सुप्रीम कोर्ट के बीच संघर्ष एवं टकराव की स्थिति को परिलक्षित करता है इसमें मुख्य विवादित एवं विचारणीय बिंदु सुप्रीम कोर्ट की अधिकारिता का था यह प्रकरण 1779-80 के बीच का माना जाता है
तथ्य : काशीनाथ बाबू नाम के एक धनाढ्य व्यक्ति ने काशी जुरा के राजा को विपुल धनराशि ऋण स्वरूप दी थी वे इस ऋण की कोलकाता के राजस्व बोर्ड के माध्यम से वसूल करना चाहते थे लेकिन इसमें उनकी सफलता नहीं हुई इस पर उन्होंने काशी जुरा के राजा के विरुद्ध कोलकाता के सुप्रीम कोर्ट में 13 अगस्त 1779 का एक वाद स्थगित किया था, काशीनाथ बाबू ने इस आशय का एक शपथ पत्र भी प्रस्तुत किया कि वे मालगुजारी की वसूली का कार्य करने के कारण सुप्रीम कोर्ट के अधिकार क्षेत्र में आते थे
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कासी जुरा का मामला हिन्दी |
वाद प्रस्तुत होने पर सुप्रीम कोर्ट द्वारा काशी जुरा के राजा के विरुद्ध गिरफ्तार के लिए सम आदेश जारी कर दिया गया उधन काशी जुरा के राजा अपनी गिरफ्तारी से बचने के लिए चुपके चुपके फिर रहे थे जिससे समा देश बिना तमिल के ही वापस सुप्रीम कोर्ट में लौटाया
राजा के छिप जाने के दो दुष्परिणाम सामने आए पहला था यह कि इसमें कंपनी की मालगुजारी की वसूली का काम रुक गया था जिससे उसे भारी नुकसान हो रहा था परिणाम स्वरूप गवर्नर जनरल एवं काउंसिल द्वारा महाधिवक्ता एडवोकेट जनरल के परामर्श से यह आदेश प्रसारित किया गया कि कंपनी के कर्मचारी व समीक्षा से सुप्रीम कोर्ट अधिकारिता स्वीकार करने वाले व्यक्तियों को छोड़कर अन्य व्यक्ति सुप्रीम कोर्ट की अधिकारिता में नहीं आते, अतः वे सुप्रीम कोर्ट की आदेशों का पालन करने के आबर्ध नहीं है । दूसरा यह है कि अपना समादेश बिना तमिल लौट आने का कारण सुप्रीम कोर्ट को नाखुश थी , आता है उसकी द्वारा राजा को गिरफ्तार वह उसकी सहमति को जप्त करने के लिए फिर से समादेश जारी किया और उसके निष्पादन के लिए शेरिफ सहित 50 - 60 व्यक्तियों का एक दल भेजा गया इस दल ने काशीज़ुरा के राजा को गिरफ्तार कर लिया ।
जब इस सारे घटनाक्रम की सूचना गवर्नर जनरल एवं काउंसिल को मिली तो उसने सुप्रीम कोर्ट के कर्मचारियों के बल प्रयोग को रोकने के लिए मिदनापुर के एक सेना अधिकारी को सेना सहित काशी जुरा भेजा । सेना की टुकड़ी की कशी ज़ुरा के राजा से भेट रास्ते में ही हो गई सुप्रीम काउंसिल की सेना ने सुप्रीम कोर्ट के कर्मचारियों को गिरफ्तार करते हुए काशीज़ुरा कि राजा को मुक्त कर दिया ।
उधर काशीनाथ बाबू ने गवर्नर जनरल एवं काउंसिल सदस्यों के विरोध भूमि में अतिचार का एक मामला सुप्रीम कोर्ट में दायर कर दिया पहले तो गवर्नर जनरल एवं काउंसिल के सदस्य सुप्रीम कोर्ट के समक्ष उपस्थित हो गए थे । लेकिन कालांतर में अपने एडवोकेट की राय से उन्होंने सुप्रीम कोर्ट से अपनी उपस्थिति वापस ले ली । वकील के इस कृत्य से सुप्रीम कोर्ट नाराज हो गई और उसने अपना सारा क्रोध उस पर उतारते हुए न्यायालय के आमान में जेल भेज दिया । जेल में रहने के दौरान ही उसे अपनी पत्नी की मृत्यु के समाचार मिले और जेल से रिहा होने की शीघ्र बाद ही उसकी मृत्यु भी हो गई इस प्रकार इस प्रकरण का पटाक्षेप हुआ।
पक्ष विपक्ष की तर्क : यह प्रकरण काफी आलोचना का विषय रहा गवर्नर जनरल एवं कौंसिल की तरफ से यह तर्क प्रस्तुत किया था कि सुप्रीम कोर्ट को इस मामले की सुनवाई की अधिकारिता नहीं थी क्योंकि काशी जुरा का राजा कंपनी का कर्मचारी नहीं था जबकि सुप्रीम कोर्ट का यह मानना था कि काशीपुरा का राजा जमीदार होने के साथ-साथ मालगुजारी की वसूली कार्य भी करता था इसलिए वह अप्रत्यक्ष रूप से कंपनी का कर्मचारी था और इसी कारण उसे उस पर अधिकार क्षेत्र था
विधि वेताओ का मत है कि अधिकारिता सुनिश्चित करने का अधिकार केवल सुप्रीम कोर्ट को ही था सुप्रीम काउंसिल को नहीं यही कारण है कि सेटिफिन द्वारा इस मामले में सुप्रीम काउंसिल की भर्त्सना करते हुए यह कहा गया कि -
" The Supreme Councils Acted Haughtily, Quite Illegally And Most Violently Without Any Adequate Reason For Conduct . "
सुप्रीम काउंसिल एवं काशी ज़ुरा के राजा को यह चाहिए था कि वे सुप्रीम कोर्ट से ही अधिकारीता का प्रशन तय कराते तथा उससे व्यथित होने पर विरुद्ध प्रिवी कौंसिल में अपील करते हैं लेकिन सुप्रीम काउंसिल ने ऐसा नहीं करते वही अधिकारिता के संबंध में आदेश जारी कर दिया और यह कह दिया कि व्यक्ति स्वयं करें कि वह सुप्रीम कोर्ट के अधिकार क्षेत्र में आता है या नहीं यह विधि विरुद्ध था ।
उल्लेखनीय है कि सुप्रीम कोर्ट की अधिकारिता के संबंध में सुप्रीम काउंसिल द्वारा ब्रिटिश संसद में भी अभ्यर्थना प्रस्तुत की गई थी इसके परिणाम स्वरूप सुप्रीम कोर्ट की अधिकारिता को काफी कम कर दिया गया था ।
प्रतिपादित सिद्धांत -
यद्यपि इस मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा महत्व कोई निर्णय पारित किया गया और ना ही विधि के सिद्धांत प्रतिपादित किए गए लेकिन इसके जो परिणाम निकले उन्हीं को विधि के सिद्धांत प्रतिपादित किए गए लेकिन इसके जो परिणाम निकले उन्हीं को विधि के सिद्धांत माना जा सकता है यथा -
- कोई व्यक्ति किसी न्यायालय के अधिकार क्षेत्र में आता है या नहीं यह सुनिश्चित करने का अधिकार केवल न्यायालय को है ; ना कि स्वंय व्यक्ति को । इस मामले में यह अधिकार सुप्रीम कोर्ट का था ना की सुप्रीम काउंसिल को । सुप्रीम काउंसिल द्वारा इस संबंध में आदेश जारी किया जाना न्यायोचित नहीं था
- अधिकारिक के प्रश्न को को विनिश्चित कराने के लिए पहले न्यायालय से प्रार्थना की जानी चाहिए और न्यायालय के आदेश से व्यथित होने पर उसके विरुद्ध अपील का सहारा लिया जाना चाहिए इस मामले में भी सुप्रीम काउंसिल में काशीजुरा के राजा का यह कर्तव्य था कि पहले अधिकारिता तय कराने के लिए सुप्रीम कोर्ट में आवेदन करते और यह यदि वे उसके निर्णय से संतुष्ट नहीं होते तो अपील का सहारा लेते ।
- न्यायालय के आदेश को सैनिक कार्यवाही से विफल कराना अथवा न्यायालय में उपस्थित से बचने का कुटिसत प्रयास करना न्यायालय का अनुमान है
परिणाम : काशीजुरा प्रकरण निम्नांकित परिणाम रहे -
- सुप्रीम कोर्ट का अधिकार क्षेत्र कम हो गया था अर्थात् उसका क्षेत्र अधिकार अब कोलकाता के प्रेसिडेंसी नगर तक ही सीमित रह गया था।
- बंगाल में न्यायिक एवं मालगुजारी के कार्यों को प्रथक प्रथक कर दिया ।
- बंदोबस्त अधिनियम 1781 ( द एक्ट ऑफ़ सेटलमेंट 1781 ) पारित किया गया ।
- सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश पर इलिजा इम्पे के विरुद्ध महाभियोग चलाया गया ।
तो दोस्तों आज मैंने आपको बताया इस आर्टिकल में काशीज़ुरा का मामला क्या था और इसमें क्या-क्या हुआ था अगर आप कोई आर्टिकल अच्छा लगा हो तो अपने साथियों को जरुर शेयर करें और यह प्रश्न परीक्षा मे हर बार आता भी है 20 नंबर का , आप अच्छे से तैयारी करें और अच्छा एलएलबी में अपना सकोप बनाए ,
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